लिथियम ऑयन बैटरी (lithium-ion-battery) की हमें क्यों जरूरत पड़ी ?

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लिथियम ऑयनबैटरी  lithium-ion-battery की ऊर्जा क्रांति :

मोबाइल फोन, टेबलेट, लेपटोप, डिजिटल केमेरा, टॉर्च, इमर्जन्सी पावर बेक-अप (जनरेटर यूपीएस),  mp3 प्लेयर,  केल्क्युलेटर,  इलेक्ट्रेनिक बाइक-साइकील, सोलार पावर, घड़ी, टीवी-एसी आदि के रिमोट, लेसर पॉइंटर एसी कई साधनो का संचालन अगर किसी के हाथ मे है तो वह लिथियम ऑयन बैटरी के हाथ मे है।

हम जिसे सिर्फ बैटरी से ही जानते है, वह हकीकत मे वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक्स युग की जीवन रेखा है। घड़ी मे उपयोग होने वाले छोटेसे सेल से लेकर सोलार पावर के संग्रह के लिए विशाल बैटरीओ का उपयोग पूरे विश्व मे होता है।

 बैटरी का इतिहास :

सामान्य दिख ने वाली बैटरी की ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र मे असाधारण प्रदान:

18वी सदी मे यूरोप मे औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई, और धीरे-धीरे पूरे विश्व मे फेल गई।

19वी सदी मे पेट्रोलियम मिला, 20वी सदी मे रास्ते पर वाहन चलने लगे। इसमे भी 1960के दशक मे ज़्यादातर आरब देशो की धरती मे से पेट्रोलियम मिला। पेट्रोलियम के उपयोग से चल ने वाले वाहनो की संख्या मे बढ़ोतरी होने लगी। थोड़े समय के बाद यह अहसास होने लगा की पेट्रोलियम आदि खतम हो जाएंगे, तो उसकी जगह कोन लेगा? एसे प्रश्न की स्थिति 1973 मे हुई, जब पेट्रोलियम के उत्पादक देशो ने अचानक उसकी कीमत बढा दी।

lithium-ion-battery
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संशोधकों ने पेट्रोलियम से ध्यान हटा कर बैटरी के विकास के ऊपर ध्यान केन्द्रित किया। बेशक, किसीभी बैटरी को चार्ज करने के लिए इलेक्ट्रिसिटी चाहिए और इलेक्ट्रिसिटी ज़्यादातर कोयले को जला कर मिलती है। लेकिन अगर कोई सक्षम बैटरी मिल जाए तो कोयले और खनिजतेल की तुलना मे ज्यादा फायदेमंद साबित होगी यह बात निर्धारित थी।

आजकल जिस बैटरी का उपयोग होता है, उससे पहले की बैटरी अलसान्द्रो वोल्टा नामके इटालियन संशोधक ने 1799 की साल मे तैयार की थी। जिसमे झिंक, चाँदी और कपड़े का उपयोग हुआ था। उस बैटरी की आयु बहुत ही मर्यादित थी। लेकिन बैटरी को केसे तैयार किया जा सकता है, उस बात का रास्ता अलसान्द्रोको मिल गया था।

डेनियल सेल बैटरी :

इस के बाद दूसरी महत्वपूर्ण बैटरी अंग्रेज़ केमिस्ट जॉन फ़्रेडरिक डेनियलने साल 1836मे तैयार की। ‘डेनियल सेल’ के नाम से पहचाने जानेवाली इस बैटरी बहुत उपयोगी साबित हुई, और इसमे थोड़े सुधार किए गए तो उपभोग मे भी वृद्धि हुई। 1898 की साल मे अमेरिकामे उसका व्यावसायिक आधार पर बेचना शुरू हुआ। ये सब केमिकल से बनी बैटरी थी।

लेड-एसिड बैटरी :

इस के बाद सिंसा(लेड) के उपयोग से बैटरी बनानी शुरू हुई। जिसमे लेड के साथ एसिड का उपयोग किया जाता था। इसीलिए यह बैटरी लेड-एसिड बैटरी के नाम से जानी गई। वाहनो मे उपयोग होने वाली यह बैटरी उसके बड़े कद से जानी जाती है। पावर को बढ़ाना हो तो उसका कद भी बढ़ाना पड़ता है।

निकल-कैडमियम बैटरी :

 बैटरी का कद भी न बढ़े और उसकी पावर क्षमता बढ़ जाए ऐसा कोई रास्ता है ?

कद भी न बढ़े और पावर बढ़े एसी निकल-केडमियन बैटरी तैयार की गई। जो लेड-एसिड से भी ज्यादा ऊर्जा रख सकती थी। लेकिन उस के उपयोग मे लिए जाने वाले केडमियन धातु झहरीला होने से उसका ध्यान रखना पड़ता था। इसीलिए उस बैटरी का निकाल करना बड़ा जोखम भरा काम था। क्यूंकी इस बैटरी के अंदर कुछ एसी समस्या थी, उसके चलते उसमे चर्जिंग करना बहुत ही समस्या का कम होता था।

इस बैटरी को अगर पूरा डिस्चार्ज न होने देते तो वह पूरी चार्ज नहीं होती थी। यानि की इस बैटरी को 100% चर्जिंग होने के बाद अगर हम इस बैटरी का 50% तक वापराश करते है, उसके बाद उसे चर्जिंग मे रखते हे, तो यह बैटरी यह समाजती थी की वह पूरी तरह से डिस्चार्ज हो चुकी है और चार्ज मे रखते ही वह 50% चार्ज होती थी।

यह बैटरी हमें यह बताती थी की यह 100% चार्ज हो चुकी हे, लेकिन वह सिर्फ 50% ही चार्ज होती थी। इस लिए यह बैटरी यह भूल जाती थी की वह आधी डिस्चार्ज हो चुकी है। इस तरह इस बैटरी मे चार्चिंग की भी समस्या थी।

लिथियम धातु के ऑयन से ऊर्जा (lithium-ion-battery):

इन सारी बातो का तोड़ ढूंढ ने के लिए विश्वविख्यात ऐनर्जी कंपनी ‘एकझोन’ ने सन 1970के दशक मे एक टिम की रचना की। इस टिम मे स्टेनली विटिंगहाम नाम के एक सदस्य थे, जिन्होने आखिर मे लिथियम धातु के ऑयन से ऊर्जा पैदा  करने का तरीका ढूंढ लिया।

बैटरी मे किस तरह से ऊर्जा पैदा होती है, उसका सायन्स और कार्य-पद्धति को विज्ञानी जानते थे। उनके लिए उस सिद्धांतो का प्रेक्टिकली उपयोग कैसे करे यही एक प्रश्न था।

इस प्रश्न का हल करने के लिए विटिंगहाम ने तरीका ढूंढ लिया। एकझोन कंपनी के मेनेजमेट इससे प्रभावित हुए और इस बैटरी के संशोधन कार्य के लिए ज्यादा निवेश करने लगी।

अब उस काममे ज्यादा से ज्यादा प्रोयोग कार्य शुरू हो गए। बहुत सारी बेटरिया बनाई गई। अब उसमे बैटरी विस्फोट होने का प्रोब्लेम आने लगा था। उसका हल ढूँढने लगे उसी समय पेट्रोलियम के भाव घटने लगे, इस कारण से एकझोन कंपनी के साथ कम करने वाली दूसरी कंपनियो को इसमे कुछ रुचि नहीं रही और यहा पर कम बांध करना पड़ा।

विटिंगहाम की बैटरी की मर्यादा को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर गुडनाव जानते थे। वह उस बैटरी के प्रोब्लेम को कैसे ठीक करे उस कार्य मे लगे हुए थे। बैटरी मे एनर्जी पैदा करने के लिए उसमे एक ‘केथोड’ होता है, उसे इस बैटरी मे किस प्रकार से रखे, याने की उसे ठीक करने का काम प्रोफेसर गुडनाव कर रहे थे।

उसके लिए उपयोग मे ली जाने वाली धातु मे बदलाव करना था। इसके लिए उन्होने पृथ्वी के अंदर से ब्लू कलर की दिखने वाली कोबाल्ट धातु को खोज कर उसका उपयोग करने लगे। उसके उपयोग से जो समस्या थी, उसका हल हो गया। समस्या का हल होने के कारण गुडनाव की बैटरीयो का उत्पादन बढ़ गया। गुडनाव ने एक दूसरा भी बदलाव किया जिसमे बैटरी को सही तरह से चार्ज भी किया जा सकता था।

उस समय इस प्रकार की लिथियम आयर्न बैटरी की ज्यादा जरूरत नहीं थी। जरूरत न हो तो क्या हुआ, यह कम कर सके उसका नाम ही मार्केटिंग। पश्चिमी देशो के संशोधकों ने यह बैटरी का विकास कर लिया था, तब पूर्व के देश जापान की इलेक्ट्रिक गुड्स कंपनी ‘सोनी’ इस तरह की बैटरी की खोज कर रही थी। सोनी कंपनी जानती थी की उनके बनाए गए उपकरणो मे अगर कम वजन और ज्यादा समय चलने वाली बैटरी का प्रयोग किया जाए तो उनके प्रोडक्ट ज्यादा बिकेंगे।

सोनी कंपनी ने लिथियम ऑयन बैटरी का क्या किया ? 

‘सोनी’ कंपनी ने बैटरी बनाने का काम ‘असही कसेई’ नामकी कंपनी को दिया था। इस कंपनी की बैटरी बनाने की टिम के ‘अकीरा योशीनों’ लीडर थे। वह केमिस्ट्री के ज्यादा जानकारी रखने वाले इस प्रोफेसर ने लिथियम ऑयन बैटरी के ऊपर संशोधन करने की ठान ली।

इनहोने विटिंगहाम और गुडनाव ने जो बैटरी की मर्यादा को राखी थी, उसमे कुछ बदलाव करने का प्रयास किया। बैटरी को सुरक्शित बनाने के लिए उन्होने पेट्रोलियम के विभाजन के समय जो भंगार निकलता था, जिसे हम ‘पेट्रोलियम कोक’ के नमसे जानते हे।

हमारे घरमे दीवाल पर लगाने वाली घड़ी और टीवी के रिमोट मे उपयोग मे ले जाने वाली बैटरी जिसे हम AA या AAA के नाम से जानते है। उस बैटरी को आपने तोड़ा होगा तो आपको इस मीसे काले रंग का पेट्रोलियम कोक दिखाई दिया होगा।  

इस प्रकार कंपनी को जिस बैटरी की तलाश थी उस प्रकार की बैटरी को बना लिया गया।

यह एसी बैटरी थी जिसे पूरी तरह खतम हो जाने के पहले, कुछ समय के लिए चार्ज की जा सकती थी। इस बैटरी का साइज़ और वजन दोनों तरह से छोटे होने के कारण इसे विभिन्न प्रकार के उपकरणो मे फिट किया जा सके इस प्रकार की थी।

केवल लिथियम से बनाई गयी बैटरीया हवा के संपर्क मे आते ही विस्फोट हो जाती थी। इसके लिए लिथियम के साथ कोबाल्ट के मिश्रण का प्रयोग किया गया, वह काफी हद तक अच्छा रहा और विस्फोट का प्रोब्लेम सोल्व हो गया।

इसके बाद तो वॉकमेन हो या रेडियो, हाथ मे रखने की बत्ती हो या कलाई घड़ी, जहा भी बैटरी का इस्तेमाल हो सके उस प्रकार के उत्पादन अब मार्केट मे आने लगे।

आज के इस युग मे एसी स्थिति बन चुकी है की, यह इलेक्ट्रोनिक प्रोडक्ट हमारे जीवन का एक अनिवार्य भाग बन चुके है। बैटरी का ज्यादा इस्तेमाल होता है वह उपकरण मोबाइल फोन, लेपटोप या कोम्प्यूटर के बिना हमसे कोई कम ही नहीं हो पता। इस बैटरी के कारण ही वायरलेस गेजेट के युग का आरंभ हुआ।

इसके बाद पूरे विश्व मे इलेक्ट्रिक बैटरी से चने वाले वाहनो की बिक्री ज्यादा हुई। भविष्य मे इस प्रकार के वाहन रोड पर ज्यादा बढ़ने वाले है। इन्हे चलाने के लिए लिथियम ऑयन बैटरी की ही जरूरत पड़ेगी।

कोई एस घर नहीं होगा की जिसमे लिथियम ऑयन बैटरी की उपस्थिती न हो। दो दशको मे पूरे विश्व मे छा जाने वाली यह क्रांति है। इसके साथ साथ सबसे कठोर विषय के रूप मे जाना जाने वाला रसायनशास्त्र किस तरह लोगो की ज़िंदगी मे परिवर्तन कर देता है इसका आसान और सर्वव्यापी उदाहरण यह ‘लिथियम ऑयन’ बैटरी है।     

 लिथियम ऑयन बैटरी के फायदे और नुकसान :            

(1) लेड-एसिड बैटरी की तुलना मे लिथियम ऑयन बैटरी का वजन 80 प्रतिशत जितना होता है, और उसका आकार तो तीसरे भाग जितना हो जाता है। एक लेड-एसिड बैटरी को रख सके उतनी जगह मे हम उतनी ही क्षमता वाली तीन लिथियम बैटरी को रख सकते है।   

(2) चार्जर मे से प्राप्त होने वाली ऊर्जा मे से 99 प्रतिशत तक के पावर को यह बैटरी ग्रहण कर सकती है। यानि की 1 प्रतिशत जितनी ऊर्जा का ही नुकसान होता है।

(3) यह बैटरी अपने आप ही डिस्चार्ज नहीं होती, लेकिन उसका एक बड़ा नुकसान यह है की यह बैटरी तीन साल से ज्यादा समय तक चलती नहीं है। दूसरा नुकसान यह है की यह बैटरी उचे तापमान मे अपना काम नहीं कर सकती। जायदा गरमी वाले प्रदेशों मे यह बैटरी की कार्य क्षमता कमजोर हो जाती है।

(4) सबसे बड़ा फायदा यह है की लेड बैटरी से दस गुना और केडियम बैटरी से पाँच गुना ज्यादा ऊर्जा लिथियम ऑयन बैटरी देती है। ऊर्जा का उत्पाद खर्च भी एक दशके मे 85 प्रतिशत तक जितना कम हो गया है।

(5) लिथियम ऑयन बैटरी सुरक्षित होने साथ ही कुछ संयोग मे शॉर्ट-सर्किट हो सकती है। इसी लिए एयरलाइंस के अंदर हमारे समान मे हम एसी बैटरी को साथमे रख नहीं सकते। 

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